निबन्ध

निबंध-नि उपसर्ग़़ तथा बन्ध धातु से मिलकर बना है। इसका शाब्दिक अर्थ बाँधना अर्थात् कसा हुआ बन्ध। साहित्य में निबन्ध का आशय उस गद्य रचना से है, जिसमें किसी विषय विशेष को लेकर विचारों के क्रमबद्ध गुम्फन से उसका समग्र विवेचन किया जाता है। गद्य की सभी विधाओं में निबन्ध एक सशक्त, महत्वपूर्ण तथा विकसित विधा है। भाषा की पूर्ण शक्ति का ज्ञान निबंध में ही सबसे अधिक सम्भव होता है।
रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार-‘‘यदि गद्य कवियों या लेखकों की कसौटी है तो निबन्ध गद्य की कसौटी है।’’
 निबंध के भेद-प्रमुख रूप से निबन्ध चार प्रकार के होते है। 1 .विचारात्मक निबंध 2. भावात्मक निबंध 3. वर्णनात्मक निबंध 4. विरणात्मक निबंध।
विचारात्मक निबन्ध-इस प्रकार के निबन्धों में बुद्धि तत्व की प्रधानता होती है, तर्कपूर्ण विवेचन किया जाता है, विश्लेषण एवं गवेषणा का आधिपत्य ,इस प्रकार के निबन्धों को लिखने के लिए चिन्तन मनन तथा अध्ययन की अधिक अपेक्षा रहती है। इसमें रामचन्द्र शुक्ल तथा महावीर प्रसाद द्विवेदी के निबन्ध आते हैं।
भावात्मक निबन्ध-इस प्रकार के निबन्धों में हृदय तत्व तथा रागात्मकता का प्राधान्य होता है। इसमें लेखक पाठक की बुद्धि की अपेक्षा हृदय को प्रथावित करता है। इनकी भाषा -सरल, सुन्दर, ललित तथा मधुर होती है। इनका वाक्य विन्यास सरल तथा शैली कवित्वपूर्ण होती है। प्रमुख निबन्धकार-हजारी प्रसाद द्विवेदी, रामविलास शर्मा हैं।
वर्णनात्मक निबन्ध-इस प्रकार के निबन्धों में किसी भी वर्णनीय वस्तु, स्थान,व्यक्ति, दृश्य आदि का निरीक्षण के आधार पर आकर्षक, सरस तथा रमणीच वर्णन होता है।
इस प्रकार के निबन्ध दो प्रकार की शैलियों मे लिखे जाते हैं। 1. यथार्थ 2. आलंकारिक (कल्पना);
प्रमुख निबन्धकार -नंद दुलारे वाजपेयी, विद्यानिवास मिश्र;
विवरणात्मक निबन्ध-इस प्रकार के निबन्धों में प्रायः ऐतिहासिक तथा सामाजिक घटनाओं, स्थानों, दृश्यों, यात्राओं तथा जीवन के अन्य विविध कार्यकलापों का विवरण दिया जाता है। शैली सरल, आकर्षक, भावानुकूल तथा व्यावहारिक होती है। प्रमुख निबन्धकारों में कुबेरनाथ तथा रघुवीर सहाय हैं।
निबन्ध के तत्व-प्रमुखतः निबन्ध के 5 तत्व माने जाते हैं। 1. निजी दृष्टिकोण या व्यक्तित्व का प्रकाशन 2. बृद्धि तत्व 3. भाव तत्व 4. सौन्दर्य तत्व 5. सुनियोजित बन्ध;
निबन्ध की दृष्टि से काल विभाजन– चार कालों मे विभाजित किया गया है।

  1. भारतेन्दु युग- 1868 से 1900 ई0 तक;
  2. द्विवेदी युग-1900 से 1920 ई0 तक;
  3. शुक्ल युग-1920 से 1940 ई0 तक;
  4. शुक्लोत्तर युग-1940 से अब तक;
    भारतेन्दु युग
     भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा संपादित पत्रिका ‘कवि वचन सुधा’ का प्रकाशन 1868 ई0 में हुआ। इसी समय से इस युग का प्रारम्भ माना जाता है।
     भारतेन्दु युग के लेखक-भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, बालकृष्ण भट्ट, बद्रीनारायण चौधरी प्रेमघन, प्रतापनारायण मिश्र, बालमुकुन्द गुप्त, राधाचरण गोस्वामी, अम्बिकादत्त व्यास।
     हिन्दी में निबन्धों का सूत्रपात भारतेन्दु युग में हुआ। साहित्यिक निबन्धों की परम्परा का प्रवर्तन भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के द्वारा हुआ।
    द्विवेदी युग के लेखक– महावीर प्रसाद प्रसाद द्विवेदी, श्यामसुन्दरदास,पद्यसिंह शर्मा, अध्यापक पूर्ण सिंह, चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, माधव प्रसाद मिश्र, गोविन्द नारायण मिश्र,
     सरस्वती पत्रिका का प्रकाशन सन् 1900 ई0 में हुआ।
     बालमुकुन्द गुप्त को भारतेन्दु युग व द्विवेदी युग के बीच की कड़ी माना जाता है।
    शुक्ल युग के लेखक- रामचन्द्र शुक्ल, गुलाबराय, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, वियोगी हरि, रायकृष्णदास, वासुदेवशरण अग्रवाल, शान्तिप्रिय द्विवेदी, श्रीराम शर्मा, नन्द दुलारे वाजपेयी माखनलाल चतुर्वेदी, सियाराम शरण गुप्त, जयशंकर प्रसाद।
    शुक्लोत्तर युग-इस युग में मनोविश्लेषण प्रधान-समीक्षात्मक, संस्मरणात्मक, रेखाचित्रात्मक और विचारात्मक निबन्ध लिखे गये हैं।
     शुक्लोत्तर युग के लेखक-हजारी प्रसाद द्विवेदी, जैनेन्द्र कुमार, डॉ0 नगेन्द्र, महादेवी वर्मा, डॉ0 रामविलास शर्मा, अमृतराय, शिवदान सिंह चौहान, रामवृक्ष बेनीपुरी, विद्यानिवास मिश्र, कुबेरनाथ राय, डॉ0 देवराज, विवेकीराय, कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर आदि निबन्धकार है।

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