सूरदास पद की व्याख्या


पद
आयो घोष बड़ो व्यापारी।
लादि खेप गुन ज्ञान जोग की ब्रज में आन उतारी।।
फाटक दैके हाटक मांगत, भोरे निपट सुधारी।
धुर ही ते खोटो लायो है लिये फिरत सिरभारी।।
इनके कहे कौन डहकावै ऐसों कौन अजानी।
अपनो दूध छाड़ि को पीवे खार कूप को पानी।।
ऊधो जाहु सबार यहां तें बेगि गहरू जनि लावौ।
मुंह मांग्यौ पैहो सूरज प्रभु साहुहि आनि दिखावौ।।
संकेत :-आयो………………………………………………………………………………….दिखावौ।

सन्दर्भ :-प्रस्तुत पद आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा सम्पादित भ्रमरगीत सार में संकलित ‘पद’ शीर्षक से अवतरित/उद्धृत है। इसके रचयिता भक्तिकाल की सगुण भक्ति शाखा की कृष्णभक्ति शाखा के सर्वोच्च कवि, वात्सल्य रस सम्राट, श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त शिरोमणि सूरदास हैं।
प्रसंग :-प्रस्तुत पद में गोपियाँ एक दूसरे को समझाते हुए कह रहीं है कि मथुरा से उद्धव हमें ठगने के लिए आए हैं। हमें उनसे सावधान रहना चाहिए। उनके कहने से प्रेम और भक्ति को त्यागकर नीरस योग साधना को कौन अपनायेगा? यदि उद्धव हमें श्रीकृष्ण का एक बार दर्शन करा दे ंतो हम उन्हें मुँह माँगा इनाम देंगी।
व्याख्या :-उद्धव गोपियों को श्रीकृष्ण की भक्ति को छोड़कर नीरस योग साधना का उपदेश देतें हैं। गोपियाँ परस्पर कह रहीं हैं कि आज ग्वालों के गाँव में एक बड़ा व्यापारी आया है। उसने ज्ञान और योग के गुणों से युक्त सामान का बोझ ब्रज में बेचने के लिए उतार दिया है। यह हमें बिल्कुल भोली और अनाड़ी समझता है। इसलिए ज्ञान योग साधना जैसी बेकार वस्तु देकर हमसे श्रीकृष्ण की भक्ति जैसी बहुमूल्य वस्तु माँग रहा है। इसका सामान प्रारम्भ से ही खोटा है। सामान खोटा होने के कारण इसका सामान कोई खरीद नहीं रहा है और यह उसे सिर पर रखकर भटक रहा है। ब्रज में ऐसा कौन अज्ञानी है जो इसके बहकावे में आकर धोखा खा जाए और इसका सामान खरीदे। अपने मीठे दूध अर्थात् श्रीकृष्ण के प्रेम और भक्ति को त्याग कर कुएं का खारी पानी पिए अर्थात् ज्ञान योग को अपनाए।
हे उद्धव! तुम बिना देर किए यहाँ से तुरंत चले जाओ। यदि तुम अपने साहूकार श्रीकृष्ण जिन्होंने तुम्हें यहाँ पर भेजा है, उनके एक बार दर्शन करा दो तो हम तुम्हें मुँह माँगा इनाम देंगी।
काव्यगत सौन्दर्य :-1. प्रस्तुत पद में श्रीकृष्ण को मीठे के समान तथा ज्ञान योग खारे पानी के समान बताया गया है।

  1. श्रीकृष्ण की भक्ति को अमूल्य तथा ज्ञान योग को अनाज का फटकन अर्थात् बेकार वस्तु बताया गया है।
  2. गोपियों की अद्भुत वचनवक्रता का वर्णन किया गया है।
  3. भाषा-सरल, सहज एवं ग्रामीण शब्दों से युक्त ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है।
  4. रस-वियोग शृंगार रस
  5. छन्द-पद
  6. अलंकार-मुंह मांग्यौ पैहौ में अनुप्रास अलंकार
  7. शैली-मुक्तक शैली

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