रिपोर्ताज
रिपोर्ताज फ्रांसीसी भाषा का शब्द है। यह अंग्रेजी शब्द ‘रिपोर्ट’ (Riport) का समानार्थी है। किसी घटना का हूबहू वर्णन रिपोर्ट कहलाती है। यह सामान्यतः समाचार पत्रों के लिए लिखी जाती है। हिंदी साहित्य ज्ञानकोश-1 के अनुसार-“रिपोर्ट के साहित्यिक और कलात्मक रूप को रिपोर्ताज कहते हैं।
रिपोर्ताज आँखों देखी या कानों सुनी घटनाओं पर लिखा जाता है। इसे कल्पना के सहारे नहीं लिखा जा सकता। इसमें घटना प्रधान होने के साथ कथातत्व भी शामिल होता है। इसका संबंध वर्तमान से होता है। इसलिए कुछ समीक्षक तात्कालिकता को रिपोर्ताज का आवश्यक तत्व मानते हैं।
हिंदी में रिपोर्ताज लिखने की शुरुआत 1938 ई. में शिवदान सिंह चौहान की रचना ‘लक्ष्मीपुरा’ से मानी जाती है। यह रचना ‘रूपाभ’ पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर का रिपोर्ताज संग्रह ‘क्षण बोले कण मुस्काए’ 1953 ई. में प्रकाशित हुआ। शिवदान सिंह चौहान ने अपने संपादकत्व में ‘हंस’ पत्रिका में ‘अपना देश’ नामक एक स्थायी स्तम्भ प्रारंभ किया। इसमें प्रत्येक माह एक रिपोर्ताज प्रकाशित होता था। 1944 ई. में रांगेय राघव ने ‘विशाल भारत’ पत्रिका में बंगाल अकाल पर ‘अदम्य जीवन’ शीर्षक से रिपोर्ताज लिखे जिन्हें बाद में ‘तूफानों के बीच’ नाम से संकलित करवाया गया।
शिवसागर मिश्र का ‘वे लड़ेंगे हजार साल’, धर्मवीर भारती का ‘युद्ध यात्रा’, विवेकी राय का ‘जुलूस रुका है’, फणीश्वरनाथ रेणु का ‘ऋण जल धन जल’ महत्वपूर्ण रिपोर्ताज हैं। ‘वे लड़ेंगे हजार साल’ 1965 ई. में भारत पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध से संबंधित है। ‘युद्ध यात्रा’ 1971 ई. के भारत पाकिस्तान युद्ध से संबंधित है। ‘जुलूस रुका है’ में स्वतंत्र भारत के गाँवों की जीती जागती तश्वीर दिखती है।
रिपोर्ताज से मिलती-जुलती एक अन्य विधा ‘फीचर’ है। इन दोनों विधाओं का जन्म पत्रकारिता से हुआ है। रिपोर्ताज गद्य की एक विधा के रूप में अपनी पहचान बना चुका है। अब इसे शैली रूप में उपन्यास, संस्मरण और आत्मकथाओं में प्रयुक्त किया जा रहा है जबकि ‘फीचर’ अभी भी पत्र-पत्रिकाओं तक सीमित है।
आधार ग्रंथ-
- हिंदी साहित्य ज्ञानकोश, भाग-1।
- हिंदी आलोचना की पारिभाषिक शब्दावली, डॉ. अमरनाथ।
- हिंदी का गद्य साहित्य, डॉ. रामचंद्र तिवरी।
- काव्य के रूप, बाबू गुलाबराय।