कहानी
कहानी को गद्य-साहित्य की सबसे लोकप्रिय विधा माना जाता है। संस्कृत साहित्य में इसे ‘कथा’ कहा गया है। कहानी ‘आख्यान, उपाख्यान, आख्यायिका’, ‘वृत्त’, ‘इतिवृत्त’, ‘गाथा’, ‘इतिहास’, ‘पुराण’, ‘वार्ता’, ‘चरित’, आदि रूप प्रचलित हैं। ‘कथा’ शब्द ही अपभ्रंश में ‘कहा’ का रूप ग्रहण कर अवधी, भोजपुरी आदि भाषाओं में ‘कहनी’, ‘कहानी’ आदि पदों में बदल गया। हिंदी में यह शब्द वस्तुतः अवधी, भोजपुरी आदि से ही आया है। हिंदी साहित्य में कहानी को ‘गल्प’, ‘आख्यायिका ’, ‘लघु कथा’ आदि नामों से भी जाना जाता है। अँगरेज़ी के ‘शार्ट स्टोरी’ के हिंदी पर्याय के रूप में ‘कहानी’ नाम प्रयुक्त किया जाने लगा।
कहानी प्रत्येक रूप में हिंदी गद्य की अन्य विधाओं से पुरानी विधा है। कहानी मानव सभ्यता से साक्षरता-काल के पहले से जुड़ी हुई है। कहानी के माध्यम से लोगों के मनोरंजन के साथ-साथ हमारी परम्परा, संस्कृति का प्रचार-प्रसार होता रहा है।
मानव सृष्टि के विकास के साथ-साथ कहानी का विकास भी हुआ है। कहानी कहना-सुनना मनुष्य की आदिम प्रवृत्तियों में से एक है।
परिभाषा-
इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के अनुसार-‘‘शार्ट स्टोरी (छोटी कहानी) एक प्रकार की गद्यकथा है, जो सामान्यतः ‘नॉवेल’ (उपन्यास) और लघु उपन्यास की तुलना में अधिक सुसम्बद्ध और संकेन्द्रित या घनीभूत होती है। उन्नीसवीं शताब्दी से पूर्व इसका विशिष्ट साहित्यिक विधा के रूप में अस्तित्व न था।’’
‘‘कहानी ऐसा उद्यान नहीं है जिसमें भाँति-भाँति के फूल और बेल-बूटे सजे हुए हो, बल्कि वह एक गमला है जिसमें एक ही पौधे का माधुर्य अपने समुन्नत रूप में दृष्टिगोचर होता है।’’-प्रेमचन्द
‘‘कहानी का आकार अधिक से अधिक इतना होना चाहिए कि उसे सरलता से बीस मिनट में पढ़ा जा सके।’’-वेल्स
‘’आख्यायिका में सौन्दर्य की एक झलक का चित्रण करना और उसके द्वारा इसकी सृष्टि करना ही कहानी का लक्ष्य होता है।’’ जयशंकर प्रसाद
कहानी के तत्व :-कहानी के छः तत्व माने जाते हैं-
1. कथानक
2. पात्र एवं चरित्र-चित्रण
3. कथोपकथन (संवाद)
4. देशकाल एवं वातावरण
5. भाषा-शैली
6. उद्देश्य
बीसवीं शती के पहले दशक में निम्नलिखित कहानियाँ प्रकाशित हुईं-
1.इंदुमती : किशोरीलाल गोस्वामी (1900)
2.प्लेग की चुड़ैल : मास्टर भगवानदास (1902)
3.टोकरी भर मिट्टी : माधवराव सप्रे (1901)
4.ग्यारह वर्ष का समय : रामचंद्र शुक्ल (1903)
5.दुलाईवाली : राजेन्द्रबाला घोष ‘ंबंगमहिला’ (1907)
6.गुलबहार : किशोरीलाल गोस्वामी (1902)
7.ग्राम : जयशंकर प्रसाद (1911)
8.कानों में कँगना : राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह (1913)
9.पंडित और पंडितानी : गिरिजादत्त वाजपेयी (1903)
10.उसने कहा था : चन्द्रधर शर्मा गुलेरी (1915)
11.सौत : प्रेमचन्द (19015)
12.बड़े घर की बेटी : प्रेमचन्द्र (1916)
उपर्युक्त कहानियों में से ‘इंदुमती’, ‘ग्यारह वर्ष का समय’ तथा ‘दुलाईवाली’ मार्मिकता की दृष्टि से भावप्रधान कहानियाँ हैं। इनमें से ‘इंदुमती’ को हिंदी की प्रथम कहानी माना जाता है।
हिंदी की प्रारम्भिक कहानियाँ ‘सरस्वती’ पत्रिका में प्रकाशित हुई थीं।
‘इंदुमती’ कहानी को कुछ विद्वान बंगला का अनुवाद मानते हैं।