शब्द और उसके भेद
शब्द
किसी भी भाषा की शक्ति उसके शब्द योजना और उसके शब्द भण्डार पर निर्भर होती है। नए भाव, विचार, अनुभव और मूल्यों को संप्रेषित करने के लिए नए-नए शब्दों की आवश्यकता पड़ती है। भाषा की नवनिर्मित शब्दावली उसे समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। किसी व्यक्ति के विचार, जीवन-दृष्टि तथा उसके अनुभूति के स्तर की जानकारी उसकी अभिव्यक्ति में प्रयुक्त शब्दावली से मिलती है।
अक्षर अथवा अक्षरों से निर्मित सार्थक एवं स्वतंत्र ध्वनि अथवा ध्वनि-समूह को शब्द कहते हैं। दूसरे शब्दों में-वर्णों के सार्थक मेल को शब्द कहते हैं।
शब्द की विशेषताएं :-शब्द की निम्नलिखित विशेषताएं हैं-
1. निश्चित क्रमबद्धता :-शब्दों की रचना ध्वनियों के एक निश्चित क्रम से होती है। यदि ध्वनियों के क्रम बदल दिए जाएं तो शब्द का अर्थ बदल जाएगा।
जैसे-कमल एवं कलम।
2. अर्थवान इकाई :-प्रत्येक भाषा में शब्द का एक निश्चित अर्थ होता है। शब्द का निश्चित अर्थ तभी होगा जब ध्वनियाँ एक निश्चित क्रम में आएं।
जैसे-कलम शब्द में तीन ध्वनियाँ हैं। यदि इनके क्रम बदल कर मकल कर दिया जाए तो मकल कोई भी अर्थ ध्वनित करने में असमर्थ है।
3. स्वतंत्र प्रयोग :-भाषा में शब्दों का प्रयोग स्वतंत्र रूप से होता है; जैसे-लड़का, घोड़ा, किताब, मिठाई, पढ़ाई। इन शब्दों की स्वतंत्र सत्ता है। कुछ इकाइयाँ (शब्दांश) अर्थवान होती हैं लेकिन वे हमेशा स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त न होकर किसी शब्द के साथ जुड़कर ही अपना अर्थ देती हैं; जैसे-छायादार में ‘दार’ तथा मिठाईवाला में ‘वाला’।
शब्दों का वर्गीकरण
शब्दों का वर्गीकरण मुख्यतः दो आधारों पर किया जाता है-
1. स्रोत या उत्पत्ति के आधार पर
2. रचना या बनावट या व्यूत्पत्ति के आधार पर
1. स्रोत या उत्पत्ति के आधार पर
स्रोत या उत्पत्ति के आधार पर हिन्दी के शब्दों के निम्नलिखित प्रकार हैं-
1. तत्सम शब्द
2. तद्भव शब्द
3. देशज शब्द
4. आगत या विदेशी शब्द
1. तत्सम शब्द :-तत्सम तत् तथा सम दो शब्दों के योग से बना है। तत् का अर्थ है-उसके अर्थात् संस्कृत के, तथा सम का अर्थ है-समान। अर्थात् संस्कृत के वे शब्द जो हिन्दी में प्रयोग किए जाते हैं, तत्सम शब्द कहलाते हैं; जैसे-कर्म, ज्ञान, दन्त, अक्षि, दधि, हस्त, अग्नि, घृत आदि।
हिन्दी के बहुत सारे शब्द संस्कृत से उसी रूप में ग्रहण कर लिए गए हैं, जिस रूप में उनका प्रयोग संस्कृत में होता है। इसलिए उन्हें तत्सम शब्द कहते हैं।
2. तद्भव शब्द :-तद्भव तत् तथा भव दो शब्दों के योग से बना है। तत् का अर्थ है-उससे तथा भव का अर्थ है-उत्पन्न। संस्कृत के वे शब्द जो पालि, प्राकृत, अपभ्रंश, पुरानी हिन्दी से विकसित होते हुए हिन्दी में अपने परिवर्तित रूप में प्रचलित हैं, उन्हें तद्भव शब्द कहते हैं।
वे शब्द जो संस्कृत से उत्पन्न हुए हैं, तद्भव शब्द कहलाते हैं; जैसे-काम, दाँत, आँख, दही, हाथ, आग, घी।
3. देशज शब्द :-जिन शब्दों के स्रोत का पता नहीं है, उन्हें देशज शब्द कहते हैं। देशज शब्दों का मूल सामान्यतः जन भाषाओं में होता है। पगड़ी, लोटा, ठेठ, खाट, डोरी, कटोरा, डोंगा, चिड़िया आदि शब्द देशज हैं।
4. आगत या विदेशी शब्द :-आगत का अर्थ है-आया हुआ।
आगत शब्द वे शब्द हैं जो दूसरी भाषाओं से आए हैं और आज हिन्दी के अपने बन गए हैं। हिन्दी में अरबी, फारसी, अंग्रेजी, तुर्की, पुर्तगाली, चीनी और जापानी आदि भाषाओं के शब्द प्रयुक्त होते हैं।
अरबी भाषा के शब्द :-अखबार, अदालत, अल्लाह, आईना, इंतजार, इंसाफ, औरत, कफन, कब्र, कसम, कसाई, कानून, किताब, कुरसी, गबन, गुनाह, दलील, दौलत, मरीज, मस्जिद, मुकदमा, मुहावरा, वकील, शतरंज, शैतान, सलाह, हवा, हिरासत।
फारसी भाषा के शब्द :-हिन्दी, आदमी, आमदनी, आसमान, कमरा, जंजीर, जमीन, जहर, जानवर, दरवाजा, नमक, परदा, प्याज, बदमाश, मजदूर, मेज, मेहमान, शादी, सब्जी, सरकार।
तुर्की भाषा के शब्द :-उर्दू, कुरता, कुली, कैंची, चाकू, तोप, बंदूक, बेगम।
अंग्रेजी भाषा के शब्द :-इंजन, कमीशन, कंपनी, कॉलेज, क्रिकेट, टाई, टायर, डायरी, डिग्री, नर्स, पुलिस, प्लेटफार्म, फुटबाल, बैंक, मोटर, लाटरी, स्टेशन, स्कूटर।
पुर्तगाली भाषा के शब्द :-आया, आलपिन, इस्पात, गमला, चाबी, तौलिया, फीता, बाल्टी, साबुन।
चीनी भाषा के शब्द :-चीनी, चाय।
जापानी भाषा का शब्द :-रिक्शा।
फ्रांसीसी भाषा का शब्द :-काजू, करतूस, अंग्रेज।
संकर शब्द
बेअदब-बे (फारसी) अदब (अरबी)
दो भिन्न भाषाओं के शब्दों के योग से बने शब्द संकर शब्द कहलाते हैं। इसमें एक भाषा का उपसर्ग या प्रत्यय तथा दूसरी भाषा का शब्द मिलकर संकर शब्द बनाते हैं। दो भिन्न भाषाओं के शब्द भी मिलकर संकर शब्द का निर्माण करते हैं; जैसे-
बेकाबू- बे (फारसी)+काबू (तुर्की)
बेघर- बे (फारसी)+घर (हिन्दी)
खेल-तमाशा-खेल (हिंदी)+तमाशा (अरबी)
मालगाड़ी-माल (अरबी)+गाड़ी (हिन्दी)
रेलगाड़ी-रेल (अंग्रेजी)+गाड़ी (हिन्दी)
टिकटघर-टिकट (अंग्रेजी)+घर (हिन्दी)
कपड़ा मिल-कपड़ा (हिन्दी)+मिल (अंग्रेजी)़
लाठी चार्ज-लाठी (हिन्दी)+चार्ज (अंग्रेजी)़
बजट सत्र-बजट (अंग्रेजी)+सत्र (संस्कृत)़
बीमा पॉलिसी-बीमा (हिन्दी)+पॉलिसी (अंग्रेजी)़
रोज़गार समाचार-रोज़गार (फ़ारसी)+समाचार (संस्कृत)़
छायादार-छाया (संस्कृत)+दार (फ़ारसी)
2. रचना या बनावट या व्यूत्पत्ति के आधार पर शब्दों के भेद :-
रचना या बनावट या व्यूत्पत्ति के आधार पर शब्दों के दो भेद माने जाते हैं-
1. रूढ़ शब्द
2. व्युत्पन्न शब्द
1. रूढ़ शब्द :-वे शब्द जो अपने आप में पूर्ण हों, किसी अन्य शब्द के योग से न बने हों और जिनके सार्थक खण्ड न हो सकते हों, रूढ़ शब्द कहलाते हैं। इन्हें मूल शब्द भी कहते हैं; जैसे-सेना, पुस्तक, घर, मिट्टी, दिन, रात, आम, हाथ आदि शब्द।
2. व्युत्पन्न शब्द :-वे शब्द जो दो या दो से अधिक शब्दों या शब्दांशों के योग से बनते हैं; जैसे-मानवता, पाठशाला, पुस्तकालय, परोपकार, नीलांबर, त्रिनेत्र, नीलकंठ आदि।
व्युत्पन्न शब्द दो प्रकार के होते हैं-
क. यौगिक शब्द
ख. योगरूढ़ या रूढ़यौगिक शब्द
क. यौगिक शब्द :-वे शब्द जो मूल शब्द के साथ शब्द, शब्दांश (उपसर्ग, प्रत्यय) आदि के जुड़ने से बनते हैं; जैसे-सेनापति, अनुशासन, चतुराई, मानवता, पाठशाला, पुस्तकालय, परोपकार आदि।
ख. योगरूढ़ या रूढ़यौगिक शब्द :-वे यौगिक शब्द जो किसी विशेष अर्थ के लिए रूढ़ हो जाते हैं; जैसे-पंकज, त्रिनेत्र, नीलकंठ, लंबोदर आदि।
शब्द और पद
जब शब्द का प्रयोग वाक्य में किया जाता है तब वह ‘पद’ कहलाता है। ‘पद’ के रूप में प्रयुक्त शब्द कोई-न-कोई व्याकरिणक प्रकार्य करता है तथा वह वाक्य के अन्य पदों के साथ जुड़ा रहता है; जैसे-‘छात्र ने पत्र लिखा’ वाक्य में ‘छात्र’ और ‘पत्र’ दोनों संज्ञा शब्द हैं किंतु व्याकरणिक प्रकार्य की दृष्टि से क्रमशः छात्र कर्ता का काम और पत्र कर्म का काम कर रहे हैं तथा ‘ने’ के सहयोग से परस्पर जुड़े हुए हैं। ‘लिखा’ क्रिया ‘लिखना’ क्रिया का भूतकालिक रूप है।
पद दो प्रकार के होते हैं-
1. विकारी
2. अविकारी (अव्यय)
1. विकारी : इन शब्दों में लिंग, वचन, पुरुष आदि के अनुसार रूपांतरण होता है; जैसे-लड़का-लड़के, अच्छा-अच्छे, वह-वे आदि।
संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया और विशेषण विकारी पद हैं।
2. अविकारी (अव्यय) : इन शब्दों का रूपांतरण नहीं होता अर्थात् इनके रूप अपरिवर्तित रहते हैं; जैसे-और, अथवा, धीरे-धीरे, आज, कल, ही आदि।
क्रियाविशेषण, संबंधवाचक, समुच्चयबोध, विस्मयादिबोधक और निपात अविकारी पद हैं।
आधार ग्रंथ
- हिंदी व्याकरण-कामताप्रसाद गुरु
- हिंदी शब्द अर्थ प्रयोग-डॉ0 हरदेव बाहरी
- सामान्य हिंदी-डॉ0 पृथ्वीनाथ पाण्डेय