भाषा
भाषा
भाषा शब्द का निर्माण संस्कृत की ‘भाष्’ धातु से हुआ है। इस धातु का अर्थ है-वाणी की अभिव्यक्ति।
‘भाष् व्यक्तायां वाचि’ अर्थात् मनुष्य की व्यक्त वाणी ही भाषा है। भाषा के माध्यम से मनुष्य के भाव तथा विचार व्यक्त होते हैं। भाषा सामाजिक मनुष्यों के बीच भावों तथा विचारों के पारस्परिक आदान-प्रदान का एक सार्थक माध्यम है।
डॉ0 श्यामसुंदरदास भाषा के सम्बन्ध में लिखते हैं-‘‘मनुष्य और मनुष्य के बीच वस्तुओं के विषय में अपनी इच्छा और मति का आदान-प्रदान करने के लिए व्यक्त ध्वनि संकेतों का जो व्यवहार होता है, उसे भाषा कहते हैं।”
भाषा की विशेषताए :-
भाषा प्रतीकात्मक होती है।
भाषा ध्वनिमय होती है।
भाषा परिवर्तनशील होती है।
भाषा का सम्बन्ध मनुष्य से है।
भाषा की क्षेत्रीय सीमा होती है।
भाषा सरलता एवं प्रौढ़ता की दिशा में सतत् गतिशील होती है।
समाज के सांस्कृतिक विकास एवं पतन के साथ भाषा का विकास एवं पतन भी सीधा जुड़ा होता हैं।
भाषा के रूप :-
प्रत्येक देश में भाषा के मुख्यतः तीन रूप परिलक्षित होते हैं-
- बोली
- परिनिष्ठत रूप
- राष्ट्रभाषा
भाषा के जिन रूपों का प्रयोग साधारण जनता अपने समूह या घरों में करती है, वे बोली कहलाते हैं। भाषा को व्याकरण से परिष्कृत कर देने पर वह परिनिष्ठत रूप ग्रहण कर लेती है। परिनिष्ठत भाषा बहुसंख्यक जनता द्वारा व्यवहार में ग्रहण कर ली जाती है तब आगे चलकर राजनीतिक और सामाजिक शक्ति के आधार पर राष्ट्रभाषा का रूप ग्रहण करती है।