12 July 2023

वर्तनी क्या है?

By Sandeep Kumar Singh

शब्दों में प्रयुक्त वर्णों की सही क्रमिकता को वर्तनी कहते हैं।

वर्तनी व्यवस्था के तीन स्तर होते हैं-

1.   वर्ण स्तर

2.   शब्द स्तर

3.   वाक्य स्तर

विराम-चिह्न वर्तनी व्यवस्था के ही अंग हैं।

1.  वर्ण स्तर पर वर्तनी के नियम

मात्रा संयोजन और संयुक्त व्यंजन बनाने की दृष्टि से सभी वर्णों को चार कोटियों में विभाजित किया जा सकता है-

क. खड़ी पाई वाले वर्ण :-वे वर्ण जिनके अंत में खड़ी पाई होती है; जैसे-ख, , , , , स आदि।

   इन वर्णों में मात्रा का संयोजन खड़ी पाई के साथ ही होता है; जैसे-गेंद, तू आदि।

जब इनके स्वर रहित (आधा अक्षर) रूप का संयोजन किसी अन्य व्यंजन के साथ करना हो तो खड़ी पाई को हटा दिया जाता है और उसके साथ परवर्ती वर्ण को जोड़ दिया जाता है; जैसे-ख्याति, ग्वाला, शब्द आदि।

ख. मध्य में खड़ी पाई वाले वर्ण :-वे वर्ण जिनके मध्य में खड़ी पाई होती है; जैसे-क, फ आदि।

इन वर्णों पर मात्रा बीच में खड़ी पाई पर लगाई जाती है और इन वर्णों के स्वर रहित (आधा अक्षर) रूप का संयोजन किसी अन्य व्यंजन के साथ करना हो तो खड़ी पाई के बाद आने वाले झुकाव को हटाकर उसे परवर्ती वर्ण के साथ जोड़ दिया जाता है; जैसे-पक्का, रफ्तार, फ्लू।

ग. छोटी खड़ी पाई वाले वर्ण :-कुछ वर्णों में खड़ी पाई बहुत छोटी होती है और उसके नीचे कुछ गोलाकार रूप होता है; जैसे-छ, , , , , ह आदि।

जब इन वर्णों के स्वर रहित (आधा अक्षर) रूप का संयोजन किसी अन्य व्यंजन के साथ करना हो तो इन व्यंजनों के नीचे हलंत का निशान लगा दिया जाता है; जैसे-मिट्टी, गड्ढा, दद्दा, चिह्न आदि।

यद्यपि द्+य=द्य, द्+o=द्व, ह्+म=ह्म आदि पारंपरिक रूप प्रचलित हैं परन्तु लेखन में एकरूपता और स्पष्टता की दृष्टि से इन्हें हलंत चिह्न के साथ लिखना उचित है।

घ. विशिष्ट वर्ण

1.   र- मात्रा संयोजन और संयुक्ताक्षर बनाने में ‘र’ की विशिष्ट स्थिति होती है। ‘र’ में उ और ऊ की मात्रा वर्ण के बीच में लगती है; जैसे-र्+उ=रु, र्+ऊ=रू।

के साथ व्यंजन संयोजन की स्थितियाँ :-

   स्वर रहित र (र्) +व्यंजन

स्वर रहित र् के साथ जब किसी स्वर सहित व्यंजन का संयोजन किया जाता है तो ‘र्’ परवर्ती व्यंजन के ऊपर लिखा जाता है; जैसे-ध+र्+म=धर्म, अ+र्+थ=अर्थ।

   स्वर रहित व्यंजन+ स्वर सहित र

जब कोई स्वर रहित व्यंजन के साथ स्वर रहित र (र्) जुड़ता है तो स्वर रहित व्यंजन का रूप नहीं बदलता और ‘र’ अपना रूप बदलकर पूर्ववर्ती व्यंजन की खड़ी पाई के नीचे जुड़ जाता है; जैसे-क्+र+म=क्रम, भ+र+म=भ्रम, श+र+म=श्रम।

शब्द स्तर पर

क. शिरोरेखा :-

    वर्णों के सार्थक मेल से शब्द बनते हैं। लेखन के स्तर पर किसी भी शब्द की सीमा का निर्धारण उसकी शिरोरेखा से होता है, इसके अतिरिक्त एक ही शब्द के वर्णों में समान दूरी रखी जाती है। सामासिक शब्दों में जब दोनों पदों को एक शिरोरेखा के अन्तर्गत लाना व्यावहारिक नहीं होता तो समास के पदों के बीच योजक चिह्न (-) का प्रयोग होता है; जैसे-माता-पिता, भाई-बहन।

   पुनरुक्त और युग्म शब्दों के बीच में भी योजक चिह्न (-) का प्रयोग किया जाता है; जैसे-घर-घर, धीरे-धीरे, सुख-दुःख।

ख. अनुस्वार (अं)

    अनुस्वार अनु तथा स्वर दो शब्दों से मिलकर बना है जिसका अर्थ है स्वर के बाद आने वाला। अर्थात् यह किसी शब्द के मध्य और अंत में ही आ सकता है, प्रारम्भ में नहीं।

    हिन्दी में अनुस्वार नासिक्य व्यंजन ध्वनि है जिसके उच्चारण के स्तर पर अनेक रूप उपलब्ध होते हैं, परंतु लेखन के स्तर पर इन विभिन्न रूपों को व्यक्त करने के लिए अनुस्वार चिह्न (अं) प्रयुक्त होता है जो व्यंजनों के प्रत्येक वर्ग के नासिक्य व्यंजन को अभिव्यक्त करता है।

    शब्द के मध्य में अनुस्वार अपने परवर्ती व्यंजन के वर्ग के नासिक्य व्यंजन अर्थात् पंचमाक्षर का प्रतिनिधित्व करता है।

नासिक्य व्यंजन =अनुस्वार =वर्ग का पंचमाक्षर

   क वर्ग के प्रथम चार वर्णों के पूर्व =ङ्

   च वर्ग के प्रथम चार वर्णों के पूर्व =ञ्

   ट वर्ग के प्रथम चार वर्णों के पूर्व =ण्

   त वर्ग के प्रथम चार वर्णों के पूर्व =न्

   प वर्ग के प्रथम चार वर्णों के पूर्व =म्

   उपर्युक्त सभी स्थितियों में नासिक्य व्यंजन अर्थात् पंचमाक्षर के स्थान पर पंचमाक्षर का प्रयोग न होकर अनुंस्वार () का प्रयोग होता है; जैसे-गंगा, पंकज, चंपक, अंब

   जब कोई पंचमाक्षर दूसरे पंचमाक्षर के साथ संयुक्त होता है तो पहला पंचमाक्षर अनुस्वार के रूप में नहीं बदलता अपितु पंचमाक्षर रूप में ही संयुक्त होता है; जैसे-वाङ्मय, अन्न, सम्मेलन, मृण्मय, उन्मुख, अक्षुण्य।

   यदि पंचमाक्षर य, व, और ह के पहले आता है तो वहाँ अनुस्वार का प्रयोग न करके वही पंचमाक्षर लिखा जाता है जिसकी ध्वनि उच्चरित होती है; पुण्य, अन्य, समन्वय, कन्हैया, तुम्हारा।

   ऊष्म वर्ण (श, स, ष, ह) के पूर्व पंचमाक्षर का प्रयोग न करके केवल अनुस्वार का ही प्रयोग किया जाता है; अंश, वंश, हंस, कंस, संहार आदि।

   सम् उपसर्ग के बाद जो शब्द अंतःस्थ या ऊष्म वर्णो से प्रारम्भ होते हैं तो ‘म्’ निश्चित रूप से अनुस्वार हो जाता है; जैसे-सम्+यंत्र=संयंत्र, सम्+वाद=संवाद, सम्+लाप=संलाप, सम्+रचना=संरचना।

अनुस्वार और अनुनासिकता में अंतर

   अनुनासिक स्वर का गुण है जबकि अनुस्वार अनुनासिक्य व्यंजन का एक रूप है।

   अनुनासिक स्वर के चंद्रबिंदु का प्रयोग किया जाता है; जैसे-मैं, कौंधना, चींटी, में, हैं।

   अतः शिरोरेखा पर मात्रा के ऊपर लगी यह बिंदी अनुस्वार की सूचक न होकर अनुनासिकता की सूचक है।

   ईकारांत और ऊकारांत शब्दों के बहुवचन रूप बनाते समय ‘ई’ और ‘ऊ’ क्रमशः ‘इ’ और ‘उ’ की मात्रा में बदल जाते हैं; जैसे-नदी-नदियाँ, वधू-वधुएं।

   संस्कृत से हिंदी में आये जिन शब्दों के अंतिम वर्ण पर हलंत का चिह्न लगता है, वे अब हलंत के बिना लिखे जाने लगे; जैसे-विद्वान, महान, श्रीमान, भगवान, हनुमान। किंतु कुछ शब्दों में हलंत का प्रयोग अब भी किया जा रहा है; जैसे-सम्यक्।

कुछ महत्वपूर्ण शुद्ध शब्द

अशुद्ध शब्द  शुद्ध शब्द

अनुगृह       अनुग्रह

अनुग्रहीत     अनुगृहीत

संगृह        संग्रह

संग्रहीत      संगृहीत

सप्ताहिक      साप्ताहिक

विशिष्ठ        विशिष्ट

पिताम्बर      पीताम्बर

अगामी        आगामी

उरिण            उऋण

क्रत्रिम        कृत्रिम

दृष्टा          द्रष्टा

सृष्टा          स्रष्टा

स्रष्टि         सृष्टि

श्रृंगार             शृंगार

बदाम             बादाम

निछावर      न्योछावर

त्यौहार        त्योहार

मिठायी       मिठाई

अक्षोहिणी     अक्षौहिणी

उपन्यासिक        औपन्यासिक

परिस्थित      परिस्थिति

गृहणी        गृहिणी

उधम        ऊधम

साहित्यक     साहित्यिक

अत्याधिक    अत्यधिक

रचियता       रचयिता

कवियत्री      कवयित्री

सदोपदेश     सदुपदेश

अन्त्यक्षरी    अन्त्याक्षरी

अहार            आहार

तत्कालिक    तात्कालिक

परलौकिक     पारलौकिक

प्रमाणिक     प्रामाणिक

संसारिक      सांसारिक

समाजिक     सामाजिक

व्यवहारिक    व्यावहारिक

व्यवसायिक        व्यावसायिक

परिवारिक     पारिवारिक

आधीन       अधीन

बरात        बारात

हस्ताक्षेप     हस्तक्षेप

कुमुदनी      कुमुदिनी

बाल्मीकि     वाल्मीकि

मैथलीशरण       मैथिलीशरण

विरहणी      विरहिणी

प्रदर्शिनी      प्रदर्शनी

अहिल्या      अहल्या

संयासी           संन्यासी

सन्यासी             संन्यासी

दिवाली        दीवाली

सरोजनी      सरोजिनी

द्रविभूत      द्रवीभूत

सूचिपत्र      सूचीपत्र

पक्षीगण      पक्षिगण

मंत्रीमण्डल    मंत्रिमण्डल

मन्त्रीवर      मन्त्रीवर

उपरोक्त       उपर्युक्त

अनुवादित     अनूदित

निरपराधी     निरपराध

राजनैतिक    राजनीतिक

पूज्यनीय      पूजनीय

अत्याधिक    अत्यधिक

अनाधिकार        अनधिकार

तदोपरान्त    तदुपरान्त

उज्जवल      उज्ज्वल

प्रज्जवलित        प्रज्वलित

प्रज्ज्वलित            प्रज्वलित

किम्वदन्ती        किंवदन्ती

मनहर       मनोहर

शरत्चन्द्र     शरच्चन्द्र

दुरावस्था     दुरवस्था

पुनरोत्थान         पुररुत्थान

पुरष्कार      पुरस्कार

सीधा-साधा        सीधा-सादा

अमावश्या     अमावस्या

आर्शीवाद     आशीर्वाद

प्रार्दुभाव      प्रादुर्भाव

कनिष्ट        कनिष्ठ

यथेष्ठ        यथेष्ट

श्लिष्ठ         श्लिष्ट

स्वास्थय     स्वास्थ्य

संयासी       संन्यासी

सन्यासी             संन्यासी

याज्ञवल्क     याज्ञवल्क्य

आधार ग्रंथ-

  1. हिंदी व्याकरण-कामताप्रसाद गुरु
  2. हिंदी शब्द अर्थ प्रयोग-डॉ0 हरदेव बाहरी
  3. सामान्य हिंदी-डॉ0 पृथ्वीनाथ पाण्डेय

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