कोश
शब्दकोश और अन्य प्रकार के कोश अनुवाद के प्रमुख साधन हैं। क्योंकि अनुवाद किसी एक भाषा से दूसरी भाषा में रूपांतरण है इसलिए स्रोतभाषा और लक्ष्य भाषा वाले शब्दकोशों की अनुवाद में प्रमुख भूमिका होती है। इस प्रकार से कह सकते हैं कि अनुवाद में द्विभाषिक कोशों की जरूरत पड़ती है। अनुवाद में अनेक प्रकार के कोशों की आवश्यकता पड़ती है।
कोश का अर्थ
आम बोलचाल में ‘शब्दकोश’ के लिए ‘कोश’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। ऋग्वेद, उपनिषद, पुराण आदि ग्रंथों में ‘कोश’ शब्द का उल्लेख किया गया है। इनमें ‘कोश’ एवं ‘कोष’ दोनों शब्दों का उल्लेख किया गया है। बींसवीं सदी में हिंदी मानकीकरण में ‘कोश’ शब्द को ‘शब्दकोश’ तथा ‘कोष’ को ‘खजाने’ के अर्थ में निर्धारित कर दिया गया।
वामन शिवराम आप्टे के संस्कृत-हिंदी-कोश में कोश का अर्थ-1.तरल पदार्थों को रखने का बर्तन, बाल्टी 2. डोल, कटोरा 3. पात्र 4. संदूक, डोली, दराज, ट्रंक 5. म्यान, आवरण 6. पेटी, ढ़क्कन, ढ़कना 7. भण्डार, ढ़ेर।
डॉ. हरदेव बाहरी के हिंदी शब्दकोश में कोश का अर्थ-1.आवरण 2. सामान रखने का पात्र 3.गोलक 4. खजाना और 5. शब्दकोश।
आप्टे और बाहरी के शब्दकोश में दिए गए अर्थों के आधार पर कह सकते हैं कि ‘कोश’ शब्द का अर्थ किसी ऐसी वस्तु के लिए प्रयुक्त किया जाता है जिसमें कुछ रखा जा सके। इसीलिए ‘कोश’ शब्द ‘खजाना’ (सोना, चाँदी आदि बहुमूल्य वस्तुएं रखने का स्थान) तथा ग्रंथ विशेष के लिए प्रयुक्त होने लगा जिसमें गाथाएँ, छंद आदि संकलित हों। कालांतर में ‘कोश’ शब्द का प्रयोग उन ग्रंथों के लिए किया जाने लगा जिनमें शब्दों का संग्रह, उनके अर्थ, प्रयोग का तरीका दिया गया हो।
भारत में प्राचीनकाल से ही ‘शब्दकोश’ के लिए ‘कोश’ शब्द का प्रयोग किया जा रहा है। मोटे तौर पर ‘कोश’ में शब्दों के अर्थ, संदर्भ एवं प्रयोग संबंधी विवरण वर्णक्रमानुसार संकलित होते हैं। प्राचीन वाङ्मय में ‘कोश’ के लिए ‘निघंटु’ शब्द का भी प्रयोग किया जाता रहा है। ‘निघंटु’ में वैदिक शब्दों का संकलन है। 700 ईसा पूर्व में यास्क ने इसकी व्याख्या ‘निरुक्त’ नाम से की थी। इसमें शब्द का धातु, अर्थ और उसका प्रयोग बताया गया है। द्रविड़ भाषा-परिवार की भारतीय भाषाओं विशेष रूप से तमिल, मलयालम और तेलुगु भाषाओं में आज भी ‘निघंटु’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। इसीलिए ‘निघंटु’ को भारत का प्रथम कोश माना जाता है।
पाँचवीं शताब्दी में अमर सिंह ने ‘अमरकोश’ नामक कोश की रचना की। इसे लौकिक संस्कृत का प्रथम कोश कहा जाता है। इसमें सबसे पहले वर्णानुक्रम पद्धति को अपनाया गया। तेरहवीं-चौदहवीं शताब्दी में अमीर खुसरो ने ‘खालिकबारी’ की रचना की। इसे प्रथम द्विभाषी कोश माना जाता है। इसमें फारसी शब्दों के हिंदी पर्याय दिए गए हैं।
‘कोश’ के लिए संस्कृत में ‘अभिधान’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। इस शब्द का अर्थ-नाम होता है। आज भी ओडिया में ‘कोश’ के लिए ‘अभिधान’ शब्द प्रयुक्त किया जाता है। संस्कृत तथा हिंदी में ‘कोश’ के लिए ‘अभिधानसंग्रह’, ‘नाममाला’, ‘शब्दमाला’, ‘शब्दार्थ कौस्तुभ’, ‘शब्द संग्रह’, ‘शब्द सागर’, ‘शब्द रत्नाकर’, ‘नाममंजरी’, ‘अनेकार्थमाला’, ‘वर्ण रत्नाकर’, ‘शब्दकल्पद्रुम’, ‘शब्द मंजरी’ आदि शब्द प्रयुक्त किए गए हैं।
अंग्रेजी में ‘कोश’ के लिए ‘Dictionary’, ‘Lexicon’, ‘Glossary’ और ‘Thesarus’ शब्द प्रचलित हैं। इनमें ‘कोश’ के लिए ‘Dictionary’ (डिक्शनरी) शब्द अधिक प्रचलित है। उर्दू में ‘कोश’ के पर्याय के रूप में ‘लुग़त’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। ‘लुग़त’ शब्द का अर्थ होता है-शब्दों का संग्रह।
कोश की परिभाषा
कोश की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। प्रमुख एवं प्रचलित परिभाषाएं निम्नवत हैं-
एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के अनुसार-‘‘कोश एक ऐसी पुस्तक है जिसमें किसी भाषा के शब्द और उनके अर्थ या तो उसी भाषा में या किसी दूसरी भाषा में सामान्यतया वर्णानुक्रम से दिये रहते हैं। प्रायः शब्दों के उच्चारण, उनकी व्युपत्ति और प्रयोग का वर्णन भी उसमें रहता है।’’
मानक हिंदी कोश के अनुसार –‘‘कोश वह ग्रन्थ है जिसमें विशेष क्रम से शब्द दिये हों और उनके आगे अर्थ दिये हों।’’
हिंदी शब्द सागर के अनुसार-‘‘कोश वह ग्रन्थ है जिसमें अर्थ एवं पर्याय सहित शब्द एकत्र किये गए हों।’’
डॉ. भोलानाथ तिवारी ‘कोश’ को विस्तार से परिभाषित करते हुए लिखते हैं-‘‘कोश ऐसे सन्दर्भ ग्रन्थ को कहते हैं, जिसमें भाषा विशेष के शब्दादि का संग्रह हो या संग्रह के साथ उनके, उसी या दूसरी या दोनों भाषाओं के अर्थ, पर्याय, प्रयोग या विलाम हों या विशिष्ट अथवा विभिन्न विषयों की प्रविष्टियों की व्याख्या, नामों (स्थान, व्यक्ति आदि) का परिचय या कथनों आदि का संकलन क्रमबद्ध रूप में हो।’’
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि कोश एक ऐसी पुस्तक है जिसमें एक भाषा के शब्दों का उसी भाषा में या फिर अन्य किसी भाषा में शब्दों के अर्थ, प्रयोग, व्युपत्ति, पर्याय, विलोम, व्याकरणिक कोटि, मुहावरे-लोकोक्तियाँ आदि संबंधी जानकारियाँ वर्णानुक्रम में दी रहती हैं।
अट्ठारहवीं शताब्दी में यूरोपीय विद्वानों ने सुव्यस्थित एवं उपयोगी कोशों की रचना की। इनमें से अधिकांशतः अंग्रजी-हिंदी कोश हैं। किक पैट्रिक (1785), हैरिस (1790), और जॉन गिलक्राइस्ट (1798) ने अंग्रेजी-हिंदुस्तानी द्विभाषी शब्दों का निर्माण किया। उन्नीसवीं शताब्दी में टेलर और हंटर, रावेक, थॉमसन, ब्राइस आदि विद्वानों ने द्विभाषी कोशों की रचना की।
हिंदी कोश
हिंदी के प्रारंभिक कोश अमर सिंह रचित कोश एकभाषी ‘अमरकोश’ पर आधारित थे। उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोपीय विद्वान भारतीय भाषाओं में रुचि लेने लगे। उन्होंने यूरोपीय कोश पद्धति के अनुसार कोशों की रचना की। ईसाई पादरी टी ऐडदम ने ‘हिंदवी भाषा कोश’ नामक प्रथम कोश की रचना 1829 ई0 में की। इसमें अकारादि क्रम में शब्दों की व्याकरणिक सूचनाओं के साथ पद और मुहावरे दिए गए हैं। इसी कोश का अनुकरण करते हुए ‘हिंदी कोश’, ‘शब्दकोश’, ‘कोश रत्नाकर’, ‘विवेक कोश’, ‘भाषा कोश’, ‘गौरी नागरी कोश’ आदि शब्दकोशों की निर्माण हुआ।
‘हिंदी शब्द सागर’ (1922-29) के प्रकाशन से हिंदी कोश निर्माण प्रक्रिया के विकास का प्रारंभ माना जाता है। यह कोश वैज्ञानिक तथा व्यवस्थित है। इसका निर्माण श्यामसुंदर दास, रामचंद्र शुक्ल, रामचंद्र वर्मा, बालकृष्ण भट्ट, भगवानदीन, अमर सिंह और जगमोहन वर्मा के संपादन में चार खण्डों में किया गया।
‘हिंदी शब्द सागर’ के बाद रामचंद्र वर्मा के संपादन में ‘संक्षिप्त शब्द सागर’, करुणापति त्रिपाठी के संपादन में ‘लघुतर हिंदी शब्द सागर’ कोश प्रकाशित हुए। 1952 ई0 में कालिका प्रसाद के संपादन में प्रकाशित ‘बृहत हिंदी कोश’ को प्रामाणिक शब्दकोश माना जाता है। 1962-65 ई0 में रामचंद्र वर्मा के संपादन में ‘मानक हिंदी कोश’ का प्रकाशन पाँच खण्डों में किया गया। फादर कामिल बुल्के कृत ‘अंगरेजी हिंदी कोश’ विशिष्ट कोश माना जाता है।