पंच परमेश्वर कहानी के एक गद्यांश की व्याख्या
संकेत : जुम्मन……………………………………………………..उचित नहीं।
संदर्भ : प्रस्तुत गद्यांश/उद्धरण उपन्यास सम्राट, कहानी सम्राट प्रेमचंद की कहानी ‘पंच परमेश्वर’ से अवतरित/उद्धृत है।
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश में जुम्मन शेख के सरपंच के आसन पर बैठने के बाद उसकी मनःस्थिति का वर्णन किया गया है। सरंपच के आसन पर बैठने से पूर्व वह अपने पुराने मित्र अलगू चौधरी से बदले की भावना से ग्रसित था। अब आसन पर बैठने के बाद उसे न्याय की सर्वोपरि दिखाई देता है।
व्याख्या : प्रस्तुत गद्यांश में लेखक कहता है कि सरपंच के आसन पर बैठते ही जुम्मन शेख को अपनी जिम्मेदारी का अहसास हो गया। जब तक वह सरपंच के आसन पर नहीं बैठा था, तब तक वह अलगू चौधरी से अपना पुराना हिसाब चुकता करने लिए तत्पर था, अब नहीं। अब वह न्याय करने के बारे में सोचता है। वह सोचता है कि वह न्याय और धर्म के सबसे ऊँचे पद पर बैठा है। इस समय वह जो कुछ बोलेगा, वह देववाणी के समान होगा। देववाणी में मेरे मनोविकारों; जैसे-घृणा, ईर्ष्या, द्वेष आदि का प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। इस समय मुझे सत्य से तनिक भी विमुख नहीं होना चाहिए।
साहित्यिक सौन्दर्य :
1. प्रस्तुत गद्यांश में सत्य और न्याय जैसे नैतिक मूल्यों का वर्णन किया गया है।
2.न्याय के आसन पर बैठने के बाद न्याय करने वाला व्यक्ति किसी का सगा संबंधी न होकर न्याय करने वाला हो जाता है।
3.भाषा : सरल, सहल और भावों के अनुकूल खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है। कुछ देशज शब्दों का भी प्रयोग किया गया है।